भोपाल । सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव का पहला चरण अब सिर्फ एक माह दूर है। बावजूद इसके अब तक चुनावी रंग नहीं जमा। चुनाव सामग्री के व्यापारियों की मानें तो बाजार पूरी तरह से ठंडा है। प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशी घोषित होने के बावजूद चुनाव सामग्री को लेकर कोई पूछताछ नहीं हो रही। प्रत्याशी तो दूर, उनके समर्थक भी अब तक प्रचार सामग्री की दुकानों पर नहीं पहुंचे।
इधर कांग्रेस ने तो अब तक प्रत्याशी ही तय नहीं किए हैं। ऐसे में चुनाव सामग्री का व्यापार करने वाले व्यापारियों को इस लोकसभा चुनाव से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। व्यापारियों का कहना है कि हमें पहले से इस बात की आशंका थी। यही वजह है कि ज्यादातर व्यापारियों ने अब तक कच्चा माल ही नहीं मंगवाया। बदले परिदृश्य के कारण कई व्यापारी चुनाव सामग्री के व्यापार से खुद को दूसरे व्यापार में शिफ्ट कर चुके हैं।
 राजधानी भोपाल से पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक प्रचार सामग्री यहीं से प्रदेश के अन्य शहरों में भेजी जाती है। शहर में चुनाव सामग्री के बड़े व्यापारी हैं। इसके अलावा कई छोटी-छोटी दुकानें हैं। कुछ वर्ष पहले तक चुनाव की घोषणा से बहुत पहले चुनाव सामग्री का व्यापार जोर पकडऩे लगता था। पार्टियों के झंडे, बैनर, टोपी, बिल्ले इत्यादि की जोरदार मांग होती थी। यही वजह थी कि चुनाव की घोषणा से पहले ही व्यापारी दिल्ली से कच्चा माल बुलवाकर इन्हें तैयार करने में जुट जाते थे। चुनाव की घोषणा होते ही चुनाव सामग्री की दुकानों पर खरीदी के लिए प्रत्याशियों के समर्थकों का तांता लग जाता था, लेकिन अब इन दुकानों पर ऐसे दृश्य नजर नहीं आते। दो दशक में चुनावी परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है।
तकनीकी विकास ने बच्चों को चुनाव से दूर किया
कुछ दशक पहले की बात है कि बच्चे भी चुनाव प्रचार का हिस्सा हुआ करते थे। पार्टियां बच्चों के लिए भी प्रचार सामग्री के रूप में टोपियां, बिल्ले इत्यादि खरीदती थीं। इन चुनाव प्रचार सामग्रियों की इतनी ज्यादा मांग हुआ करती थी कि चुनाव की घोषणा से कई सप्ताह पहले प्रिंटिंग प्रेसों में टोपियां छपनी शुरू हो जाती थीं। जगह-जगह झंडे तैयार करने के कारखाने भी चलते थे। इनमें सभी राजनीतिक दलों के झंडे सिले जाते थे। कच्चा माल दिल्ली से मंगवाया जाता था। तकनीकी विकास का असर यह हुआ कि बच्चे आम चुनाव से पूरी तरह से दूर हो गए हैं। उनकी रुचि अब टोपियों या पार्टियों के बिल्लों में नहीं, अपितु आनलाइन गेम में रहती है। लगातार गिरते व्यापार के कारण चुनाव सामग्री के व्यापारियों ने भी अपने हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिए हैं। व्यापारियों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में ज्यादातर मुख्य व्यापारियों ने दूसरे व्यापार में हाथ आजमाना शुरू कर दिया है। चुनाव आयोग की सख्ती के कारण अब पार्टियां झंडे, पोस्टर पर कम ही खर्च करती हैं।