सारे देश में संविधान को लेकर नई बहस शुरू

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने संविधान को बदलने का एक लेख लिखा। यह लेख एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। इस लेख की बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया सारे देश में हो रही है। सभी राजनीतिक दल इसका भारी विरोध कर रहे हैं। गैर भाजपाई दल इसे भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की घृणित सोच बता रहे हैं। पिछले 3 दिनों से समाचार पत्रों, सोशल मीडिया और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा, इस लेख को लेकर बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। टीवी चैनल में भी अब यह मामला तूल पकड़ रहा है।
 विवेक देवराय ने संविधान को 1935 के ब्रिटिश सरकार के अधिनियम पर आधारित बताकर तीव्र आलोचना की है। इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया सारे देश में हो रही है। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र होने के बाद,एक संविधान सभा का गठन हुआ था। जिसने लगभग ढाई साल तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, विशेषज्ञों, राजनेताओं और जनता से सुझाव आमंत्रित किए। सभी पक्षों को सुनने के बाद, जिस तरह का संविधान तैयार किया गया। उसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार, नागरिक स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता को मूल अधिकार में शामिल किया गया। संविधान प्रदत्त मौलिक  अधिकार को बदलने की शक्तियां संविधान ने  किसी को नहीं दी।  संविधान में जो भी संशोधन जरूरी होंगे,वह संसद कर सकती है। न्यायपालिका उनकी समीक्षा कर सकती है। मूल अधिकारों के साथ कोई भी छेड़छाड़ करने का अधिकार संसद और न्यायपालिका को भी संविधान ने नहीं दिया। नागरिकों का यही मौलिक अधिकार दुनिया के सभी संविधान से भारत के संविधान को श्रेष्ठ बनाता है। वही सभी नागरिकों के अधिकारों को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षित करता है। इस प्रावधान के कारण भारत में कभी भी तानाशाही नहीं आ सकती है। नाही नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम किया जा सकता है। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने मौलिक अधिकारों को खत्म किया था। लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उन्हें संवैधानिक दृष्टि से बहाल भी करना पड़ा। भारतीय संविधान की यही सबसे बड़ी विशेषता है।
 विवेक देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने जाते हैं। वर्तमान में हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग विभिन्न संगठनों द्वारा की जा रही है।उनके द्वारा जब संविधान में
आमूल चामूल परिवर्तन कर नए संविधान को बनाने की बात की है। यह संविधान की प्रस्तावना मे समाजवादी व्यवस्था,धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक व्यवस्था,न्याय व्यवस्था और स्वतंत्रता को संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जोड़कर रखा गया हैl बरॉय के लेख के अनुसार इसकी कोई जरूरत नहीं है।
यह माना जा रहा है कि संघ और भाजपा की पहल पर शांत पानी में एक कंकड़ फेंका गया है। इस कंकड़ को फेंकने के बाद पानी में जिस तरह की  हलचलें हो रही हैं। उसका गहन अध्ययन संघ और भाजपा कर रही है।
विवेक देवराय ने जो लेख लिखा था। उसमें पूरा संविधान बदलने की बात कही है। उन्होंने जो नया संविधान बने, उसे आर्थिक आधार पर बनाने की वकालत की है। उनके हिसाब से किसी भी लिखित संविधान की उम्र 17 साल से ज्यादा नहीं होती है। भारतीय संविधान 73 साल पुराना हो चुका है। इसके लिए वह पूरा संविधान बदलने की बात कर रहे हैं। इस लेख की सारे देश भर में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। अब देखना है,कि नए संविधान को लागू करने के प्रस्ताव पर, चुनाव मैं किस तरह का असर पड़ता है। संघ भारतीय संविधान जो वर्तमान में लागू है  इसको लेकर कभी भी पक्षधर नहीं रहा है। संघ हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर हमेशा अपनी बात कहता रहा है। संविधान बदलने की बात जो की जा रही है। इसका मुख्य बिंदु हिंदू हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना ही है। पिछले 10 सालों जिस तरह का वातावरण सारे देश में बना हुआ है। उसके कारण राजनेताओं और आम आदमियों में इसका विरोध भी शुरू हो गया है।