फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, मुझसे अकसर पूछे जाने वाले सवालों की सूची में अब एक नया सवाल जुड़ गया है, ‘सर, आप अपने हर लेख में कहानियों का इस्तेमाल क्यूँ करते हैं और इतनी सारी कहानियाँ लाते कहाँ से हैं?’  तो चलिए मैं पहले प्रश्न के दूसरे हिस्से के जवाब से शुरू करता हूँ, ‘मैंने बचपन में बहुत सारी कहानियाँ सुनी हैं, इसलिए याद हैं और दूसरी बात मैं अभी भी कहानियाँ पढ़ता हूँ। रही बात हर लेख में कहानियों के ज़िक्र की तो दोस्तों, मैंने जीवन मूल्य, चरित्र के महत्व, सही और ग़लत के फ़र्क़ आदि जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों के बारे में परिवार के बुजुर्गों द्वारा सुनाई गई कहानियों से ही सीखा है। इसलिए मुझे लगता है कि जीवन के सूत्र कहानियों से सीखना और सिखाना बहुत आसान है।’

वैसे अगर आप थोड़ा गहराई से जाकर देखेंगे तो पाएँगे कि कहानियाँ सामान्यतः अपने अंदर कई गूढ़ अर्थ लिए हुए होती है, अर्थात् वे हमें सीधे-सीधे कुछ कहने की जगह अंदाज़ा लगाने की छूट देती हैं। साथ ही वे हमें कल्पना के द्वारा नए विषयों, घटनाओं या जगहों, परिस्थितियों, चुनौतियों के बारे में विचार करने का मौक़ा देती हैं। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ, यह हमारी कल्पनाशीलता को बढ़ाती हैं। कहानियाँ कभी भी सुनने वाले का आकलन नहीं करती हैं। जी हाँ दोस्तों, कहानियाँ सुनाते वक्त मुझे आजतक किसी ने भी नहीं कहा है, ‘इस कहानी को अच्छे से याद रखना, मैं कुछ दिन बाद तुम्हारी परीक्षा लूँगा और अगर तुम परीक्षा में अच्छे नम्बर नहीं लाए तो देख लेना…’ असल में परिवार के बड़े लोगों ने मुझे कहानी सुनाकर, उसकी मूल सीख के बारे में चर्चा कर, मुझे अपनी कल्पना शक्ति के साथ, अपने सपनों की दुनिया में रहते हुए उसका अर्थ निकालने, इस्तेमाल करने के लिए छोड़ दिया था। हो सकता है आपमें से कुछ लोग इसे मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव मान सकते हैं और सोच सकते हैं यह कोई तार्किक कारण तो नहीं हुआ, तो चलिए थोड़ा सा विज्ञान के आधार पर इसके प्रभाव को समझ लेते हैं।

अमेरिका के द फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ एबीसी (UFABC) एवं इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन के डॉक्टरों द्वारा अस्पताल के आई॰सी॰यू॰ में भर्ती 2 से 7 साल के 81 बच्चों पर एक रिसर्च की गई। जिसका मुख्य उद्देश्य यह जानना था कि क्या कहानियाँ वाक़ई में शारीरिक और भावनात्मक लाभ पहुँचाती हैं?

रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए इसका नेतृत्व कर रहे यूएफएबीसी के गुलहर्म ब्रोकिंगटन और आईडीओआर के जॉर्ज मोल ने बच्चों को दो समूह में बाँटा। आधे बच्चों को प्रतिदिन 25 से 30 मिनिट तक पहेलियाँ पूछी और बचे हुए आधे बच्चों को इतनी ही देर कहानियाँ सुनाई गई। इस प्रयोग का परिणाम जानने के लिए कहानियाँ सुनाने या पहेलियाँ पूछने के पहले और बाद में बच्चों के सलाइवा के सैंपल लिए और उसमें कोर्टिसोल और ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्तर मापा।

आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि सलाइवा में उच्च मात्रा में कोर्टिसोल और निम्न मात्रा में ऑक्सीटोसिन हार्मोन तनाव अर्थात् स्ट्रेस बताता है एवं कम कोर्टिसोल और उच्च ऑक्सीटोसिन हार्मोन शांत होने का संकेत देता है। दोस्तों इस टेस्ट के परिणाम डॉक्टर को चौंकाने वाले थे पहेलियां सुलझाने वाले बच्चों की तुलना में कहानी सुनने वाले बच्चों के सलाइवा में कम कोर्टिसोल और उच्च ऑक्सीटोसिन हार्मोन पाया गया। अर्थात् कहानियाँ सुनने वाले बच्चे अधिक शांत और तनाव रहित पाए गए थे।

इस रिसर्च ने कुछ और बातों को प्रामाणिक रूप से सिद्ध कर दिया था। बच्चों के बेहतरीन जीवन, रचनाशीलता, स्वास्थ्य, रिश्तों को बेहतर बनाने एवं तनाव, दबाव जैसे नकारात्मक भाव कम करने में कहानियाँ सुनाना एक बेहद आसान, कारगर और बढ़िया तरीक़ा है।

असल में दोस्तों कहानी सुनते समय इंसान कल्पना के माध्यम से विचारों और मानवीय संवेदनाओं का अनुभव कर सकता है जो उसे यथार्थ से निकालकर दूसरी दुनिया में ले जाता है। अर्थात् वह तात्कालिक स्थिति से बाहर निकलकर काल्पनिक दुनिया में चला जाता है, जिसे हम 'नैरेटिव ट्रांसपोर्टेशन’ कहते हैं। यही स्थिति उसे नकारात्मक प्रभावों से दूर कर सकारात्मक चीजों से जोड़ देती है। वैसे दोस्तों इस स्थिति, अर्थात् कहानी सुनाते वक्त बच्चों में आए मनोवैज्ञानिक और बायोलॉजिकल परिवर्तन का अनुभव आप कहानी सुनाते वक्त उनके हाव-भाव में आए परिवर्तन को पढ़कर भी समझ सकते हैं। शायद इसीलिए अमेरिका के जाने माने कवि और लेखक स्ट्रिकलैंड गिलियन ने अपनी कविता ‘द रीडिंग मदर’ में कहा था, ‘मुझसे ज़्यादा अमीर तुम कभी हो ही नहीं सकते क्यूँकि मेरी एक माँ थी जिनके साथ मैंने कहानियाँ पढ़ी।’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com