राजस्थान में निजी डॉक्टर 28 मार्च को राज्य विधानसभा में पारित विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। विधेयक के अनुसार, राज्य के प्रत्येक निवासी को किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान और निजी संस्थान में पूर्व भुगतान के बिना आपातकालीन उपचार और देखभाल का अधिकार होगा।

राजस्थान में गहलोत सरकार राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई है जिसके बाद से ही डॉक्टर्स और सरकार के बीच काफी तनातनी है। अपनी मांगो को लेकर सड़कों पर उतरे निजी डॉक्टर्स झुकने को तैयार नहीं हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार ने साफ कर दिया है कि किसी भी हालात में बिल वापस नहीं होगा, जो डॉक्टरों की मांगे हैं उनको बिल में डाल दिया जाएगा। इस बीच विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर हड़ताली डॉक्टरों और राजस्थान सरकार के बीच सोमवार को हुई वार्ता बेनतीजा रही। 

निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम सोसायटी के सचिव विजय कपूर के नेतृत्व में डॉक्टरों के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने विधेयक पर गतिरोध को दूर करने और लोगों को उचित चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की लेकिन बैठक में इस मसले का कोई ठोस हल नहीं निकला।

राजस्थान में निजी डॉक्टर 28 मार्च को राज्य विधानसभा में पारित विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। विधेयक के अनुसार, राज्य के प्रत्येक निवासी को किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान और निजी संस्थान में पूर्व भुगतान के बिना आपातकालीन उपचार और देखभाल का अधिकार होगा। 

डॉक्टरों का कहना है कि यह बिल हमारे लिए बहुत घातक है। उनका मानना है कि इस बिल से डॉक्टर्स और मरीजों के बीच और अधिक झगड़े बढ़ेंगे। अभी तक मरीज और डॉक्टर्स के बीच जमीनी स्तर पर सामंजस्य नहीं बैठ सकेगा, इसलिए बिल का विरोध है। 

कपूर ने एक बयान में कहा कि विधेयक के विरोध में राज्यव्यापी पूर्ण चिकित्सा बंद सोमवार को 16वें दिन भी जारी रहा। जेएमए सभागार में अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बड़ी संख्या में चिकित्सक पहुंचे। उन्होंने कहा कि आंदोलन का समर्थन करते हुए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सरकार से डॉक्टरों की जायज मांगों को स्वीकार करने और इस गतिरोध को तुरंत समाप्त करने का आग्रह किया।