सर्वप्रथम तो यह जान लीजिए कि मोती खनिज नहीं, बल्कि जैविक रत्न होता है और इसका निर्माण समुद्र के गर्भ में, एक विशेष प्रकार के जीव,

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सर्वप्रथम तो यह जान लीजिए कि मोती खनिज नहीं, बल्कि जैविक रत्न होता है और इसका निर्माण समुद्र के गर्भ में, एक विशेष प्रकार के जीव, जिसे 'घोंघा' कहते हैं, के द्वारा किया जाता है। घोंघा सीप के अंदर रहता है। मोती के विषय में कहा जाता है कि स्वाति नक्षत्र में वर्षा की बूंद जब सीप के खुले मुंह में पड़ती है, तब मोती का जन्म होता है लेकिन वैज्ञानिक धारणा यह है कि जब कोई विजातीय कण सीप के भीतर प्रविष्ट हो जाता है तो घोंघा उस पर अपने शरीर से निकलने वाले मुक्ता-पदार्थ का आवरण चढ़ाना शुरू कर देता है और इस प्रकार धीरे-धीरे वह कण मोती का रूप धारण कर लेता है।

सौम्या, नीरज, मुक्ता, मुक्ताफल, मैक्तिक, शुक्तिज, शौक्तिकेय, शशि रत्न तथा शशि प्रिय, ये सब नाम मोती के बताए जाते हैं। अंग्रेजी में इसे 'पर्ल' कहते हैं। मोतियों की बीस जातियां हैं : जरठ, अतिसांव, मत्स्याल, शुक्ति, कृशा, आवृता, जब्बा, छाबना, लहा, शिदूल, प्राप्त, तान, चौंच, सुन्ना, कागा, लवा, मसा, रिक्ता, वियाता आदि।

मोती सफेद, काला, पीला, लाल और आसमानी रंग का होता है। यह चंद्रमा का प्रतीक है और दक्षिण भारत में मद्रास दरभंगा खाड़ी, फारस की खाड़ी, सिंहल द्वीप (श्री लंका), वेनेजुएला (दक्षिण अमरीका), चूना खाड़ी (बंगाल) और आस्ट्रेलिया में मिलता है।
फारस की खाड़ी में उत्पन्न होने वाला मोती 'बसरे का मोती' कहलाता है, जो सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। प्रसिद्ध रत्न पारखी एवं ज्योतिषि श्री रत्न चंद धीर के अनुसार, मोती सात अन्य स्थानों पर भी पैदा होता है। उनका विवरण यूं है।

गजमुक्ता : हाथियों में एक नर कुंजर हाथी होता है और उसका मस्तक रात को भी चमकता है। यह मोती उससे मिलता है। राजस्थान के एक राजघराने में गजमुक्ता मोतियों की माला है, जिसे पहन लेने से बिजली जलाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती।

शंखमुक्ता : यह मोती पंचजन्य शंख में पाया जाता है। इसे धारण करने से मनुष्य धनी हो जाता है।

सर्पमुक्ता : वासुकी जाति का भूजंग नाग, जिसका रंग सफेद या काला होता है, जब आयु के सौ वर्ष पार करता है, तब मणि के रूप में यह मोती उसके सिर में आ जाता है। यह मोती कामधेनु कहलाता है।

शुकर मुक्ता : शूकर जाति में एक ऐसा शूकर होता है जो यौवन काल में पागल हो जाता है। वह अपना सिर चारों ओर पटकता है और उसका सिर लहूलुहान हो जाता है। यह मोती उसके मस्तक से प्राप्त होता है। यह वाक् सिद्धि के लिए श्रेष्ठ है। बीरबल के पास शूकर मुक्ताओं की माला थी, जिसके कारण वह कभी वाक् शक्ति में पराजित नहीं हुए।

वंशमुक्ता : जिस वन में बांसों के झुंड होते हैं, श्रवण, स्वाति और पुण्य नक्षत्र में इस बांस से बांसुरी जैसी ध्वनि निकलती है, जो नक्षत्र के आरंभ से समाप्ति तक रहती है। इस बीच पारखी इस बांस को काट लेते हैं। उसी बांस की गांठ में हरे रंग का वंश मुक्ता मोती होता है। इसके पहनने से सुंदरता को चार चांद लग जाते हैं।

आकाश मुक्ता : पुण्य नक्षत्र में यदि खूब वर्षा हो, तो यह मोती आकाश से गिरता है। सागर में, रेत में, जंगल में भी यह मोती गिरता है। इसका रंग सफेद और काला होता है। ऐसा माना जाता है कि इसके पहनने से हर प्रकार का शारीरिक रोग ठीक हो जाता है।

मीन मुक्ता : यह मोती मछली के अंदर से प्राप्त होता है। इस मछली का आकार बड़ा होता है और पंख सुनहरा होता है। मोती रंग में पीला होता है। इसकी अंगूठी पहन कर अंधेरे में सब कुछ देखा जा सकता है।

मेष मुक्ता : रविवार को पुण्य नक्षत्र हो या श्रवण नक्षत्र, वर्षा में यह आकाश से गिरता है। इस मोती का रंग सफेद होता है। इसके पहनने से प्रतिष्ठा बढ़ती है और पेट के रोग नहीं होते।

सीप मुक्ता : यह मोती सीपियों से मिलता है। ज्योतिषी चंद्र ग्रह में इसी मोती को पहनने का परामर्श देते हैं।