नई दिल्ली। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार के बाद से वसुंधरा राजे सूबे की सियासत में हाशिए पर थीं. चुनावी साल में अब वो फिर से फ्रंटफुट पर नजर आ रही हैं. वसुंधरा सालासर में अपने जन्मदिन पर बड़ी रैली कर अपनी ताकत दिखा चुकी हैं.पार्टी ने भी उन्हें दोबारा तरजीह देना शुरू कर दिया है. यही वजह है कि कुछ महीनों पहले जहां वसुंधरा की सियासत खत्म होने तक के दावे किए जा रहे थे, वहीं अब उनकी एक बार फिर राजस्थान में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में वापसी की भविष्यवाणी की जाने लगी है.

 

पूनिया की ताजपोशी थी वसुंधरा को सख्त मैसेज

बीजेपी आलाकमान ने वसुंधरा राजे की पसंद-नापसंद को दरकिनार कर सतीश पूनिया को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया था. ये एक तरह से वसुंधरा को सख्त मैसेज था. सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद राजस्थान बीजेपी के कार्यक्रमों से वसुंधरा दरकिनार की जाने लगीं. राजस्थान में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा मानी जाने वालीं वसुंधरा राजे पार्टी के होर्डिंग-पोस्टर्स से गायब हो गईं.कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) संगठन के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. इसके बाद वसुंधरा का पत्ता कटने की अटकलें लगने लगी थीं. लेकिन चुनावी साल में वक्त ने पूरी तरह करवट ले ली है. पहले सतीश पूनिया की छुट्टी हुई और अब बात वसुंधरा के करियर खत्म होने की नहीं, उन्हें बीजेपी का सीएम फेस बनाने की होने लगी है.

 

परिवर्तन के पीछे कर्नाटक चुनाव नतीजों का रोल

वसुंधरा राजे को लेकर बीजेपी और शीर्ष नेतृत्व के रुख में आए परिवर्तन के पीछे कर्नाटक चुनाव नतीजों का बड़ा रोल माना जा रहा है. कर्नाटक में बीजेपी की हार के पीछे हर चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे पर दांव लगाने की रणनीति और मजबूत स्थानीय चेहरे येदियुरप्पा को दरकिनार किए जाने को भी बड़ी वजह बताया गया. माना जा रहा है कि बीजेपी राजस्थान में वसुंधरा राजे को दरकिनार कर कर्नाटक वाली गलती नहीं दोहराना चाहती.साल 2018 के विधानसभा चुनाव के समय तब के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मध्य प्रदेश को लेकर करीब-करीब वैसी ही बात कही थी जैसी इस बार गजेंद्र सिंह शेखावत ने राजस्थान को लेकर कही. बात थी संगठन के चेहरे पर चुनाव लड़ने की. इसके बाद जब चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी 15 साल बाद सत्ता गंवा बैठी. इसके लिए तब नेतृत्व को लेकर बनी भ्रम की स्थिति को भी जिम्मेदार बताया गया था.

 

राजस्थान में वसुंधरा राजे क्यों हैं बीजेपी की मजबूरी

उधर, वसुंधरा राजे के सुर भी बदल गए हैं. वसुंधरा राजे ने झारखंड में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नौ साल पूरे होने पर जनसभा को संबोधित किया. अपने संबोधन के दौरान वसुंधरा ने न सिर्फ प्रधानमंत्री की तारीफ की, बल्कि ये दावा भी किया कि 2024 में भी मोदी सरकार को सत्ता में आने से कोई रोक नहीं पाएगा.वसुंधरा का बयान, हाल ही में राजस्थान के आबूरोड में हुए पीएम मोदी के कार्यक्रम में उनको मिली तरजीह और पार्टी के होर्डिंग-पोस्टर पर पूर्व सीएम की वापसी...इन सबको देखते हुए अब ये चर्चा भी तेज हो गई है कि क्या बीजेपी वसुंधरा के ही नेतृत्व में राजस्थान के रण में उतरेगी?बीजेपी के नेता इस तरह के कयासों पर कुछ बोलने से अभी बच रहे हैं. वहीं, राजनीति के जानकार इसे राजस्थान में बीजेपी की मजबूरी बताते रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि वसुंधरा राजे की लोकप्रियता पूरे राजस्थान में है. सच्चाई यही है कि राजस्थान में बीजेपी के पास ऐसा कोई नेता नहीं जो कद और लोकप्रियता के मामले में वसुंधरा के आसपास भी हो.

 

वसुंधरा के बिना बीजेपी के लिए आसान नहीं चुनावी राह

अमिताभ तिवारी कहते हैं कि वसुंधरा ही वह चेहरा हैं जो बीजेपी को राजस्थान के रण में विजयी बना सकता है. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी इस बात को समझ रहा है कि हर बार सरकार बदलने के ट्रेंड के बावजूद वसुंधरा राजे के बिना पार्टी की चुनावी राह आसान नहीं होगी. यही वजह है कि बीजेपी में वसुंधरा को तरजीह मिलनी शुरू हो गई है.अमिताभ तिवारी कहते हैं कि राजस्थान में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से सतीश पूनिया की छुट्टी वसुंधरा राजे की नाराजगी दूर करने की दिशा में बीजेपी नेतृत्व का पहला कदम था. इसके बाद बीजेपी के होर्डिंग पोस्टर पर वसुंधरा राजे की तस्वीरों की वापसी के साथ ही उनके निजी कार्यक्रम सालासर रैली में बीजेपी विधायकों के साथ ही तमाम दिग्गजों का पहुंचना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आबूरोड रैली में उनके पास की कुर्सी पर बैठे नजर आना भी इसी तरफ इशारा कर रहे थे.ऐसे समय में जब कांग्रेस दो दिग्गजों (अशोक गहलोत और सचिन पायलट) के आंतरिक द्वंद्व में उलझी है, बीजेपी वसुंधरा राजे की नाराजगी मोल लेकर राजस्थान के रण में कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी.