भोपाल। दूध की जली कांग्रेस इस बार मध्य प्रदेश के चुनाव में छाछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है। चुनाव में सबसे अहम टिकट वितरण की रणनीति में ही पार्टी ने बड़ा बदलाव करने का मन बनाया है। कांग्रेस इस बार जिताऊ के साथ-साथ टिकाऊ उम्मीदवार को टिकट वितरण में ज्यादा तरजीह देने की रणनीति पर काम कर रही है। इनदिनों राजधानी भोपाल में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकें हो रही हैं। कमेटी हर सीट पर नामों की एक सूची कांग्रेस इलेक्शन कमेटी को सौंपेगी। यहां विस्तृत चर्चा के बाद नाम फाइनल किया जाएगा। कांग्रेस पहली सूची सितंबर के अंत तक जारी कर सकती है।
मध्य प्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी में कर्नाटक की छाप दिख रही है। मध्य प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी में सांसद सप्तगिरी उल्का को शामिल किया गया है, जिन्होंने कर्नाटक कांग्रेस के टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस इस बार जिताऊ के साथ-साथ टिकाऊ उम्मीदवार भी खोज रही है। फील्ड में काम के आधार पर उम्मीदवार जिताऊ होगा, उसे टिकट दिया जाएगा। पार्टी जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार खोज रही है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में टिकट वितरण के लिए 2 स्तर पर सर्वे कराए जा रहे हैं। मप्र में कमलनाथ के लिए काम करने वाली एक एजेंसी सर्वे तैयार कर रही है। वहीं हाईकमान से जुड़ी एक टीम भी सर्वे कर रही है। दोनों सर्वे के आधार पर पर्यवेक्षक और इलेक्शन कमेटी के सदस्य लिस्ट तैयार करेंगे। लिस्ट में जिताऊ-टिकाऊ के आधार पर नंबरिंग किया जाएगा।  हाल ही में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कमलनाथ का सर्वे ही फाइनल माना जाएगा। कमलनाथ हर सीट पर जिताऊ के साथ टिकाऊ उम्मीदवार खोज रहे हैं।
चुनाव के दौरान कांग्रेस के टिकट वितरण में बड़े नेताओं की सिफारिशों का दबदबा रहा है। बड़े नेता सीधे दिल्ली से अपने समर्थकों का टिकट फाइनल करा देते थे। मप्र के चुनाव में यह ज्यादा देखा जाता रहा है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक सिफारिश पॉलिटिक्स इस बार भी चलेगी, लेकिन तरीका बदला गया है। इस बार बड़े नेता जिन सीटों को जीताने की गारंटी लेंगे और रिपोर्ट भी उस पर मुहर लगाएगी, वहीं पर उनके समर्थकों को टिकट दिया जाएगा। मप्र में लगातार 3 चुनाव में जिन सीटों पर कांग्रेस हार रही है, वहां दिग्विजय की सिफारिश को तवज्जों दी जाएगी।
मप्र में पिछले साल हॉट सीटों पर कांग्रेस ने बड़े चेहरे को मैदान में उतारा था। मसलन, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को टिकट दिया था। यादव चुनाव जीतने में सफल नहीं हुए थे। यादव को शिवराज के क्षेत्र में उतारने से कांग्रेस को निमाड़ में नुकसान अधिक हो गया। क्योंकि, पूरे चुनाव में यादव बुधनी विधानसभा में ही व्यस्त रहे। कांग्रेस इस बार हॉट सीटों पर चुनाव लड़ाने के लिए जॉइंट किलर खोज रही है।  कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक हॉट सीटों पर लोकल नेता या समाजिक पृष्ठभूमि से आए लोगों को टिकट देने की तैयारी है, जिससे समीकरण उलट-पलट सके।
 कांग्रेस बाहरी नेताओं को टिकट देने के लिए भी फॉर्मूला तैयार किया है। पार्टी उन्हीं दलबदलुओं को टिकट देगी, जो चुनाव जीतने के साथ-साथ वफादार हो। हाल ही में कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी ने बड़ी संख्या में भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल कराया है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक जिन नेताओं को पार्टी में शामिल कराया जा रहा है, उनमें से अधिकांश को सरकार आने के बाद एडजेस्टमेंट का भरोसा दिया जा रहा है।  कांग्रेस सितंबर अंत या अक्टूबर के पहले हफ्ते तक उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पार्टी पहली सूची में उन्हीं उम्मीदवारों को जगह देगी, जिनके पार्टी छोडऩे की संभावनाएं शून्य है। यानी बड़े नेताओं की उम्मीदवारी की घोषणा सितंबर के अंत तक हो सकती है।
लोकसभा चुनाव से पहले मप्र का चुनाव कांग्रेस के लिए काफी अहम है। यहां भाजपा से पार्टी का सीधा मुकाबला है। अगर यहां चुनाव हारती है, तो पार्टी के प्रति गलत नैरेटिव सेट होगा, जिसका सीधा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। प्रदेश में हार के बाद गठबंधन में भी कांग्रेस को कम तरजीह मिलेगी। मप्र को लेकर अब तक जितने भी सर्वे आए है, उसमें करीबी का मुकाबला दिखाया जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस यहां बिल्कुल रिस्क नहीं लेना चाहती है। 2018 में लगभग सीट बराबर होने की वजह से कांग्रेस की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। विधायकों के पाला बदल लेने की वजह से सरकार गिर गई। कांग्रेस इस बार हॉट सीट पर भी कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है, जिससे भाजपा के क्षेत्रीय क्षत्रप अपने क्षेत्र में ही सीमित हो जाए और पार्टी के लोकल वर्सेज नेशनल नेतृत्व की रणनीति कामयाब हो जाए।