फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। नदी किनारे एक बहुत ही बुजुर्ग साधु रहा करते थे। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि उन्होंने प्रभु श्री कृष्ण को पा लिया है। इसी वजह से दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने, उनका आशीर्वाद लेने के लिए आया करते थे। वे भी दिन रात प्रभु श्री कृष्ण की भक्ति में लगे रहते थे सुबह कृष्ण का नाम लेते हुए उठना, नदी नहाने जाना और उसके बाद ध्यान, भजन, पूजन आदि बस यही उनका दिन भर का कार्य रहा करता था।

उसी गाँव में अनपढ़ गंवार दो सहेलियाँ रहा करती थी, वे भी प्रभु श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थी। उनके मन में प्रभु के दर्शन पाने की तीव्र इच्छा थी। जैसे ही उन्हें इन बुजुर्ग साधु महात्मा के बारे में पता चला कि इन्होंने प्रभु को पा लिया है, यह उनके पीछे पड़ गई। असल में इन दोनों को लगता था कि अगर साधु महात्मा ने प्रभु को पा लिया है तो यह उन्हें हमेशा अपने साथ लेकर ही चला करते होंगे। लेकिन साधु महात्मा हमेशा उन्हें अकेले ही, कंधे पर अपना झोला डाले, नज़र आया करते थे। इन दोनों को लगा, हो ना हो साधु महाराज ने प्रभु को अपने झोले में छुपा रखा है। अब वे महात्मा जी के झोले की तलाशी लेने के मौके की तलाश में रहने लगी।

अपने नियमानुसार एक दिन साधु महात्मा जैसे ही स्नान करने के लिए नदी में उतरे, दोनों महिलाओं ने इसे स्वर्णिम मौक़ा मान भगवान को ढूँढने के लिए साधु महात्मा के झोले की तलाशी लेना प्रारम्भ कर दिया। पूरे झोले में भगवान को ना पा दोनों हैरान थी तभी दोनों सहेलियों में से एक की नज़र माचिस की डिब्बी समान एक डब्बे पर पड़ी। उन्होंने उसे खोल कर देखा तो उसमें भगवान श्री कृष्ण की बचपन की एक अष्ट धातु की मूर्ति जिसे सामान्यतः लड्डू गोपाल कहा जाता है एक रेशमी कपड़े में लिपटी हुई रखी थी। 

भगवान श्री कृष्ण की घुटने के बल चलती हुई मूर्ति को देख वह परेशान होते हुए बोली, ‘देखो यह साधु कितना निर्दयी है। इतनी छोटी डिब्बी में भगवान को रख रखा है, देखो इस वजह से भगवान के हाथ-पैर सब टेढ़े-मेढ़े हो गए हैं। चलो हम भगवान की मालिश कर उन्हें अपने हाथ-पैर सीधा करने में मदद करते हैं।’  उसकी बात सुन दूसरी सहेली बोली, ‘हाँ, तुम बिलकुल सही बोल रही हो, इस डिब्बी में तो हाथ-पैर हिलाने लायक़ भी जगह नहीं है। बेचारे लड्डू गोपाल जी के हाथ-पैर इस छोटी सी डिब्बी में बंद रहने की वजह से टेढ़े हो गए हैं।’ 

दोनों ने बात करते-करते लड्डू गोपाल को डिब्बी से निकाला और नहलाने के बाद भगवान श्री कृष्ण से बोले, ‘प्रभु अब अपने हाथ-पैर सीधे कर लो, आपको भूख भी लग रही होगी हम आपके लिए दही-मक्खन लाए हैं।’  लेकिन दोनों की बातों का लड्डू गोपाल की मूर्ति पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। दोनों सहेलियाँ थी भी एकदम सीधी-साधी, उन्होंने मूर्ति की ओर देखते हुए कहा, ‘देखो, प्रभु के हाथ-पैर तो एकदम अकड़ गए हैं, चलो मालिश कर इन्हें सीधा करने का प्रयास करते हैं।

दोनों की बातें, प्रयास और सरल व्यवहार को देख प्रभु आनंदित हो गए और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। पर मूर्ति अभी भी टेढ़ी ही थी, लेकिन वो दोनों सहेलियाँ भी तो कहाँ हार मानने वाली थी। दोनों अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रही थी, काफ़ी देर बाद दोनों की सरलता और लगन को देख भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने हार मान, अपने हाथ और पैर सीधे कर लिए। इसके बाद दोनों सहेलियों ने भगवान को नहलाया और दही-माखन का भोग लगाया और अंत में प्रभु को प्रणाम कर बोली, ‘प्रभु आप अब आराम करो!’ और उन्हें डिब्बी में रखने का प्रयास करने लगी, लेकिन हाथ-पैर सीधे हो जाने की वजह से लड्डू गोपाल अब उस डिब्बे में आ नहीं रहे थे। 

वे अभी प्रयास कर ही रही थी के इतने में साधु-महात्मा स्नान कर वापस आ गए। महात्मा उन दोनों को देख और हाथ-पैर सीधे किए लड्डू गोपाल को देख चौंक गए। महात्मा तो ज्ञानी थे, वे तुरंत सारा माजरा समझ गए और उन्होंने दोनों सहेलियों, जिन्हें गाँव वाले अनपढ़ और बेवक़ूफ़ माना करते थे, के पैर पकड़ लिए और बोले, ‘पूरे जीवन मैंने यतन करा पर मुझे कभी सफलता नहीं मिली, मैं तो बस लड्डू गोपाल को साथ लिए यहाँ-वहाँ घूमता रहा, लेकिन धन्य हो तुम दोनों आज तुम्हारी सरलता और सहजता के कारण मुझे भी प्रभु लीला के दर्शन हो गए। 

दोस्तों, कहानी सुनाने में तो काल्पनिक सी लगती है, लेकिन अपने अंदर खुश, मस्त रहते हुए जीवन जीने का मंत्र छुपाए हुए है। अक्सर लोग समझदार, बुद्धिमान बन जीवन का प्रबंधन करने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि भूल ही जाते हैं कि जीवन प्रबंधन के लिए नहीं बल्कि खुलकर, खुश और मस्त रहने के लिए है। हम जीवन बनाने, ख़ुशी-ख़ुशी, मस्त रहते हुए उसे जीने के लिए सब कुछ करते हैं, पता नहीं कितनी चीजों की कुरबानियाँ भी देते हैं पर उसके बाद भी सफल नहीं हो पाते हैं क्यूँकि खुश, मस्त और खुल कर जीवन जीने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़, सरल और सहज रहना भूल जाते हैं। आशा करता हूँ सरल, सहज स्वभाव को अपनाकर आप अपने जीवन को सफल बनाएँगे। 

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com