वाशिंगटन । नासा ने दो वॉयजर अंतरिक्ष यान लॉन्च किए गए थे। अमेरिकी एजेंसी ने 1977 में फ्लोरिडा के केप कैनावरल से वॉयजर अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया था। जिसमें एक यान की बैट्री अब खत्म होने लगी है। वॉयजर-1यान और वॉयजर दो यान बृहस्पति और शनि ग्रह की करीब से स्टडी करने के लिए बनाए गए थे। लेकिन वॉयजर उम्मीद से ज्यादा आगे निकले हैं। उन्होंने यूरेनस और नेपच्यून ग्रहों की भी स्टडी की। कोई भी चीज हमेशा नहीं रह सकती और वायजर की बैट्री भी अब इतने साल बाद खत्म होने लगी है। जिसके कारण ये स्पेस क्राफ्ट हमेशा के लिए इंसानों से संपर्क खोने वाला है। 44 साल बाद अब नासा ने इसके एक-एक सिस्टम को बंद करना शुरू कर दिया है, जिससे आने वाले कुछ सालों में ये पूरी तरह बंद हो जाएगा। वॉयजर को जिस काम के लिए बनाया गया था वह 1990 में ही पूरा हो गया था, लेकिन अंतरिक्ष यान धरती पर महत्वपूर्ण डेटा भेजते रहे। वॉयजर 1 और 2 यान पृथ्वी से 14 अरब किमी दूर की यात्रा कर चुके हैं। जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक राल्फ मैकनट ने कहा कि 44.5 साल से वायजर काम कर रहे हैं। हमें जितनी उम्मीद थी उससे 10 गुना ज्यादा काम हम वायजर से ले चुके हैं। 
वायजर को बनाने में अपनी भूमिका निभाने वाले डोनाल्ड गर्नेट बताते हैं, 'हम हमेशा दो अंतरिक्ष यान लॉन्च करते थे क्योंकि उस समय मिशन फेल होने की संभावना ज्यादा होती थी। इसी वजह से दो वॉयजर विमान बनाए गए थे।' कैलटेक भौतिक विज्ञानी एलन कमिंग्स ने कहा कि, 'आज हमें ऐसा लगता है कि हम टेक्नोलॉजी के टॉप पर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वॉयजर 1 और 2 में 69.3 किलोबाइट की मेमोरी है। इससे ज्यादा तो आज कार को खोलने वाली चाबियों में होती है।' वॉयजर को पावर कैसे मिलती है? 
वॉयजर यान किसी सोलर पैनल से नहीं चलता क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह बहुत पहले ही सूर्य से दूर होने पर बंद हो चुका होता। अगर पहले से चार्ज बैट्री भेजी जाती तो ये संभव नहीं था, क्योंकि उससे विमान भारी हो जाता। दरअसर वॉयजर को रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर से पावर मिलती है। ये न्यूक्लियर एनर्जी होती है जो वॉयजर को पावर देती है। लेकिन अब लगातार न्यूक्लियर तत्व खत्म हो रहा है, जिससे वॉयजर को कम पावर मिल रही है। नासा ने एक बयान में कहा कि कम पावर के चलते वॉयजर की सिर्फ जरूरी चीजों को ही चालू रखा जाएगा।