नई दिल्ली।  केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहा है। इससे पहले 2018 में भी विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था, जिसमें विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी थी।

मोदी से पहले एनडीए के पहले प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को भी तीन बार लोकसभा में विश्वासमत परीक्षण से गुजरना पड़ा था।

पहली परीक्षा में फेल हो गए थे वाजपेयी
1996 के आम चुनावों में बीजेपी 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी को तब के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था। साथ ही सदन में बहुमत साबित करने को भी कहा था। 16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार देश की बागडोर संभाली थी लेकिन 13 दिन बाद जब लोकसभा में विश्वास मत परीक्षण हुआ तो वह बहुमत साबित करने में विफल रहे। इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

सदन को पढ़ाया था राजनीति का धर्म और मर्म
28 मई, 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले लोकसभा में विश्वासमत प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भाषण दिया था। वह भाषण अभी भी लोगों के जेहन में है और काफी याद किया जाता है। तब वाजपेयी ने सभी राजनीतिक दलों के नुमाइंदों को भविष्य के लिए राजनीति का धर्म और मर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहा था, "सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।" उन्होंने कहा था, "देश में ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए। न सांप्रदायिक आधार पर, न जातीय आधार पर और न ही राजनीति ऐसे दो खेमों में बंटनी चाहिए कि जिनमें संवाद न हो, जिनमें चर्चा न हो।"

सदन में की थी कांग्रेसी प्रधानमंत्री की खुली तारीफ
तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था, "देश आज संकटों से घिरा है और जब-जब देश संकटों से घिरा है, हमने उस समय की सरकारों को मदद की है।" वाजपेयी ने पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव की तारीफ करते हुए कहा था कि राव ने उन्हें नेता विपक्ष के तौर पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में जिनेवा में भारत का पक्ष रखने को भेजा था, इसे देखकर पाकिस्तान चाकित रह गया था। पाकिस्तान को इस बात पर हैरत थी कि विरोधी दल के नेता सरकार का पक्ष रखने कैसे आ गए, जबकि पाकिस्तान में विरोधी दल के नेता सरकार की आलोचना हरेक मोर्चे पर देश के अंदर और बाहर भी करते रहे हैं। भारत में इसकी जगह नहीं होनी चाहिए। ये कटुता बढ़नी नहीं चाहिए।

देवगौड़ा पर ली थी चुटकी
उसी सदन में अपने भाषण के दौरान वाजपेयी ने यूनाइटेड फ्रंट द्वारा एचडी देवगौड़ा को नेता चुनने पर चुटकी ली थी और कहा था कि मुझे नहीं पता कि यूनाइटेड फ्रंट ने फोर्थ च्वाइस को फर्स्ट च्वाइस कैसे बना दिया। वाजपेयी ने तंज कसा कि जो उनके चौथे च्वाइस थे, अब देश के पहले च्वाइस बनने जा रहे हैं। इस भाषण के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को जाकर अपना इस्तीफा सौंप दिया था। दो दिन 1 जून को एचडी देवगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।

वाजपेयी को दो और बार करना पड़ा अविश्वास प्रस्ताव का सामना
1996 के बाद वाजपेयी 1998 में दोबारा सत्ता में आए लेकिन सिर्फ 13 महीने बाद अप्रैल 1999 में उन्हें फिर से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। भाजपा के गठबंधन सहयोगी - एआईएडीएमके - के समर्थन वापस लेने के बाद वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई थी। भाजपा की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन को 269 वोट मिले थे, जबकि विपक्ष को 270 वोट मिले थे।

कांग्रेस की सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्ष सरकार बनाने के लिए संख्याबल जुटाने में विफल रहा। इसके बाद लोकसभा फिर से भंग कर दी गई और नए चुनाव हुए। चुनाव होने तक वाजपेयी "कार्यवाहक" प्रधान मंत्री बने रहे। 1999 के आम चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने लोकसभा की 543 सीटों में से 303 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया।

13 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली थी। जब वाजपेयी ने दोबारा जॉर्ज फर्नांडिस को मंत्रिमंडल में शामिल किया तो कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। 19 अगस्त 2003 को एक बार फिर वाजपेयी को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा, जिसमें वाजपेयी सरकार की जीत हुई थी।