मुंबई| 2024 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू होने के साथ ही विपक्षी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले अपने चुनावी अंकगणित को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राजनीतिक गठबंधनों और रणनीतियों की गणना करने में व्यस्त हैं।

पिछले दो लोकसभा (2014-2019) चुनाव विपक्षी दलों के लिए निराशाजनक थे। उनके सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता रहा।

तीन साल पहले, कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शिवसेना (यूबीटी) के एक अप्रत्याशित गठबंधन 'एमवीए' का गठन किया। जिसने अक्टूबर 2019 में भाजपा के लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने के प्रयासों को विफल कर दिया।

हालांकि भाजपा जून 2022 में एमवीए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को गिराने में कामयाब रही और बालासाहेबंची शिवसेना (बीएसएस) के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में राज्य में सरकार का गठन कर लिया।

लेकिन शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष ठाकरे ने एमवीए सहयोगियों को नहीं छोड़ा। सहयोगियों ने भी उनके सुर में सुर मिलाया।

फिलहाल राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में तीन विपक्षी गठजोड़ की संभावना सामने आ रही है। महाराष्ट्र में एनसीपी-शिवसेना (यूबीटी) व कांग्रेस का गठबंधन चट्टान की तरह मजबूत प्रतीत हो रहा है।

दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और फरवरी 2022 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने महाराष्ट्र के नेताओं से मुलाकात की और उनके राष्ट्रीय राजनीतिक डिजाइन पर चर्चा की।

उन्होंने राकांपा सुप्रीमो शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। दोनों दिग्गजों ने बनर्जी और राव का गर्मजोशी से स्वागत किया, लेकिन गैर-कांग्रेसी मोर्चे को अव्यवहारिक बताया।

पवार और एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं प्रफुल्ल पटेल, सुप्रिया सुले, अजीत पवार, प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे, संजय राउत, अरविंद सावंत और आदित्य ठाकरे व अन्य लोगों ने विभिन्न अवसरों पर 2024 में भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस सहित विपक्षी एकता की जरूरत बताई है।

पवार और राउत ने विचार व्यक्त किया कि कांग्रेस अपनी अखिल भारतीय उपस्थिति, सभी वर्गों के बीच स्वीकृति, अनुभव और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होने के नाते विपक्षी एकता की धुरी हो सकती है।

शरद पवार ने इस उद्देश्य के लिए राजनीतिक स्पेक्ट्रम में अपने 'दोस्तों' की सेना के माध्यम से अपने पैंतरेबाजी जारी रखी है। हाल ही में सांसद राहुल गांधी के नेतृत्व वाली भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस और आंशिक रूप से विपक्ष के गिरते मनोबल के लिए'बूस्टर खुराक' साबित हुई।

राकांपा की सुले, पाटिल, डॉ. जितेंद्र आव्हाड और अन्य बड़े नेता कांग्रेस को समर्थन देते हुए यात्रा में शामिल हुए। उसके बाद शिवसेना (यूबीटी) के आदित्य ठाकरे, अंबादास दानवे, संजय राउत और उर्मिला मातोंडकर ने भी इसमें शिरकत की।

गौरतलब है कि तीनों राजनीतिक दल उस समय एकजुट हो गए थे, जब 23 नवम्बर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार (एनसीपी) को उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई।

हालांकि, एनसीपी और कांग्रेस के प्रयासों से पिछली सरकार को सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर करते हुए उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

जून 2022 में एमवीए सरकार गिरने से कुछ हफ्ते पहले पवार ने ठाकरे को स्पष्ट चेतावनी दी थी कि आपदा आसन्न है। इस बात का खुलासा हाल ही में अजीत पवार ने किया था।

सेना के नेताओं ने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा और उनके भरोसेमंद लोगों ने अचानक तख्तापलट के माध्यम से उन्हें धोखा दिया।

केंद्रीय जांच एजेंसियां एनसीपी और शिवसेना (यूबीटी) के कई नेताओं के पीछे पड़ीं, यहां तक कि पवार और ठाकरे के रिश्तेदारों तक भी पहुंचीं, लेकिन एमवीए साझेदारी नहीं टूटी।

एमवीए ने हालिया एमएलसी द्विवार्षिक चुनाव लड़कर तीन सीटों पर जीत हासिल की, भाजपा और एक बागी कांग्रेसी को एक-एक सीट मिली।

तीनों पार्टियां अब पुणे की दो विधानसभा सीटों पर आगामी उपचुनाव लड़ रही हैं, जो उनके राजनीतिक लचीलेपन का एक और परीक्षण होगा।

एमएलसी चुनावों के बाद, एमवीए का संदेश, जैसा कि कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, अजीत पवार और राउत ने कहा, यह स्पष्ट है कि अगर हम एकजुट रहते हैं तो जीतेंगे और विभाजित होते हैं तो टूट जाएंगे।