वाशिंगटन । वैज्ञानिकों को नए अध्ययन में एक बाहरी ग्रह यानी एक्सोप्लेनेट से संकेत मिले हैं कि धरती का अंत कैसे होगा? वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे ग्रह पृथ्वी का वजूद सूर्य के अस्तित्व से है।साफ है कि जब तक पृथ्वी को सूर्य से प्रकाश मिलता रहेगा, तब तक हमारे ग्रह का अस्तित्व बना रहेगा।
दरअसल, वैज्ञानिकों ने नए अध्ययन में एक्सोप्लेनेट को अपने तारे की ओर टकराने के लिए जाते हुए देखा है।धीरे-धीरे इस एक्सोप्लेनेट की अपनी कक्षा खत्म हो रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रहों के जीवन चक्र को समझने के नजरिये से ये अध्ययन मील का पत्थर साबित होगा।शोधकर्ताओं को पहले ही पता लग चुका है कि एक्सोप्लेनेट अपने तारे में समाकर नष्ट हो जाते हैं।ये अभी तक सिर्फ सैद्धांतिक तौर पर माना जाता रहा है।अभी तक नष्ट होते किसी ग्रह को नहीं देखा गया था।ऐसे में इस अध्ययन में वैज्ञानिकों को इस पूरी घटना को देखने का मौका मिल रहा है।नासा ने टेलीस्कोप की मदद से अपने तारे की ओर बढ़ रहे बाहरी ग्रह केप्लर 1658बी की खोज 2009 में ही कर ली थी।हालांकि, इस बाहरी ग्रह के अस्तित्व की पुष्टि करने के लिए वैज्ञानिकों को एक दशक का समय लग गया था.वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बाहरी ग्रह और बृहस्पति ग्रह में काफी समानताएं हैं।दोनों का आकार और भार करीब-करीब बराबर है।दोनों में सिर्फ इतना सा अंतर है कि बाहरी ग्रह अपने तारे के बहुत ज्यादा नजदीक पहुंच चुका है।इन दोनों के बीच की दूरी सूर्य और बुध के बीच की दूरी के 8वें हिस्से के बराबर रह गई है।इस तरह के एक्सोप्लेनेट का अंत कक्षा खत्म होने पर अपने तारे में समाने से होता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक्सोप्लेनेट की कक्षा हर साल घटती जा रही है।हालांकि, ये एक्सोप्लेनेट काफी धीमी रफ्तार से अपने सूर्य की ओर बढ़ रहा है। एक्सोप्लेनेट की कक्षा हर साल 131 मिली सेकेंड की दर से घट रही है।खगोलविदों के मुताबिक, किसी भी ग्रह और उसके सूर्य के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल एकदूसरे के आकार में बदलाव पैदा करता है।इसी बदलाव के कारण जबरदस्त ऊर्जा भी निकलती है।वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐसी ही ऊर्जा बृहस्पति ग्रह और उसके चंद्रमाओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के कारण भी पैदा हो रही है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अब ऐसे प्रमाण मिल गए हैं, जिनसे हम अपनी टाइडल फिजिक्स के सिद्धांतों को बेहतर कर सकते हैं।केप्लर 1658बी के अंत की प्रक्रिया वैज्ञानिकों के लिए एक प्रयोगशाला की तरह काम करेगा। मालूम हो कि लोग अक्सर कहते हैं कि अंतरिक्ष से कोई बहुत बड़ी चट्टान या उल्कापिंड धरती से टकराएगा, तब पृथ्वी कई टुकड़ों में बंटकर नष्ट हो जाएगी. वैज्ञानिक भी इस सवाल का सही जवाब खोजने के लिए लंबे समय से शोध व अध्ययन कर रहे थे. अब वैज्ञानिकों को सफलता मिल गई।