सत्यनारायण बागरी

भारतीय स्वाधीनता के संघर्ष में जितना योगदान बलिदानियों और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण उन संत विभूतियों का है जिन्होंने समाज को एकजुट होकर स्वत्व जागरण का आव्हान किया था । ताकि भारत एक स्वाधीनता संपन्न राष्ट्र बन सके । संत रविदास उनमें सबसे प्रमुख थे । उनके संकल्प के अनुरूप मध्यप्रदेश में निकाली जा रही सामाजिक समरसता यात्रा समाज में एकत्व स्थापना का अद्भुत वातावरण बना रही है । यात्रा का समापन 12 अगस्त को सागर में होने जा रहा है । उसी दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी संत रविदास के विशाल मंदिर निर्माण की आधार शिला रखेंगे।

विदेशी शक्तियों ने भारतीय समाज को बाँटकर अपने राज्य शासन की नींव रखी थी । संत रविदास ने उनके षड्यंत्र को बेनकाब कर समाज के सभी वर्गों और जातियों को एक सूत्र में बाँधने अभियान चलाया था । इसके लिये उन्होंने भारत भर की यात्राएँ की और विभिन्न वर्गों और समूहों के लोगों को अपने अभियान में जोड़ा। चित्तौड़ की महारानी सुप्रसिद्ध संत और झाला रानी उनकी शिष्य बनीं । रविदास ने जिस परिवार में जन्म लिया था उस परिवार की आविका का काम चर्मशिल्प था । रविदास पढ़ने के लिये रामानानंद के आश्रम में गये ।

रामानंद ने शिष्यत्व प्रदान किया । अपनी शिक्षा पूरी कर रविदास ने सामाजिक समरसता यात्रा पर निकले पर अपनी आविका के लिये चर्मशिल्प का काम न छोड़ा।  वे उपानह अर्थात जूता बनाने का सामान अपने साथ रखते । प्रवचन संगोष्ठी के बाद अपना काम करते । उनके काम न छोड़ने का कारण यह था कि वे समाज को अपनी परंपरा के प्रति गौरव गरिमा का भाव जगाना चाहते थे
वे कहते थे-

जनम जात मत पूछिए,
का जात अरू पात।
 रैदास पूत सब प्रभु के,
कोए नहिं जात कुजात॥

रैदास जन्म के कारनै
 होत न कोए नीच।
नर कूं नीच करि डारि है,
 ओछे करम की कीच॥

संत रविदास के इन्ही संदेशों के साथ आरंभ इस समरस यात्रा समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा है । लोग स्वप्रेरणा से इस यात्रा का स्वागत करने आगे आये ।संत शिरोमणी रविदास ने अपने गुरु रामानंद की प्रेरणा से समाज को संगठित और जाग्रत करने का जो अभियान छेड़ा था । उसी के अनुरूप यह यात्रा रही । संत रविदास का अभियान दो स्तरीय था । एक तो स्वत्व का जागरण ताकि समाज परिस्थतियों से भयभीत होकर अपने जड़ों से दूर न हो जाय इसीलिए वे जन्म और जाति के आधार के बजाय सद्कर्म और आचरण की श्रेष्ठता पर जोर देते थे ।

उनकी दृष्टि में आविका के लिये कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता । इसलिए जूता बनाने का सामान सदैव अपने साथ लेकर चलते थे । उनका दूसरा अभियान था समाज को जाति, वर्ग वर्ण और क्षेत्र से ऊपर उठकर भारत राष्ट्र की पराधीनता से मुक्ति संघर्ष के लिये तैयार करना । इस संबंधी भी उनकी अनेक रचनाएँ थीं । वे कहते थे-

पराधीनता पाप है,
जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सौं,
कौन करैहै प्रीत॥ ...

सौ बरस लौं जगत मंहि,
वत रहि करू काम।
 रैदास करम ही धरम हैं,
करम करहु निहकाम॥ ...

उनकी इन पंक्तियों में बहुत स्पष्ट है कि पराधीनता से मुक्ति संघर्ष के लिये समाज को तैयार कर रहे थे और अपने कर्म को धर्म बताकर स्वत्व और स्वाभिमान जगाना चाहते थे । उनके इन दोनों अभियानों की झलक उनकी देश व्यापी यात्राओं और रचनाओं से मिलती है । भारत का ऐसा कोई प्राँत और क्षेत्र नहीं जहाँ रविदास ने यात्रा न की हो । उनकी स्मृतियाँ भारत के प्रत्येक प्राँत और प्रत्येक क्षेत्र में है । उनका पंजाब लोक वन में रविदास , उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान में रैदास, गुजरात और महाराष्ट्र में 'रोहिदास' तथा बंगाल में उन्हें ‘रुइदास’ के नाम का संबोधन है । कुछ पांडुलिपियों में रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास नाम का भी उल्लेख मिलता है।

जो संदेश संत शिरोमणी रविदास ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में यात्रा करके पूरे समाज को एक सूत्र में पिरोया था ठीक उसी के अनुरूप मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत कार्यरत संस्था जनअभियान परिषद ने इस यात्रा को संयोजित किया है । ये कुल पाँच यात्राएं हैं जिन्हें 25 जुलाई को प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आरंभ हुईं। इनका शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह ने किया था । पहली यात्रा ग्यारह जिलों के, दूसरी यात्रा तेरह जिलों के, तीसरी यात्रा दस जिलों के, चौथी यात्रा आठ जिलों के और पाँचवी यात्रा नौ जिलों के विभिन्न स्थानों से होकर ग्यारह अगस्त तक सागर पहुँचेगी। जहाँ 12 अगस्त को इन यात्राओं का औपचारिक समापन होगा ।

अठारह दिनों तक चलने वाली यह यात्राएं कुल 46 जिलों के 244 स्थानों में जनसंवाद कार्यक्रम आयोजित कर रही है । अधिकांश स्थानों का लक्ष्य पूरा हो गया है और विभिन्न क्षेत्रों से होकर निकलने वालीं ये समरसता यात्राएँ अब समापन की ओर हैं। पूरी यात्रा में संत रविदास के भजनों और संकल्पना गीतों का गायन हुआ तथा उनके वन के प्रेरणादायक प्रसंगों की चर्चा हुई । इस यात्रा और इसके आयोजनों में गाँव और कस्बों के लोग स्वप्रेरणा और आस्था से जुड़े ।

यात्रा जिस गाँव कस्बे नगर से निकलती लोग जुड़ते और अगले पड़ाव तक छोड़ने जाते । यात्रा में सागर में प्रस्तावित संत रविदास मंदिर निर्माण के लिये हर घर से एक मुट्ठी मिट्टी और जल एकत्रित किया गया। प्रदेश की ऐसी कोई नदी नहीं जिसका जल संग्रहीत न हुआ हो । संत रविदास का प्रस्तावित मंदिर पूरे प्रदेश के हर गाँव कस्वे का प्रतीक होगा, अंश होगा । सभी यात्राएं 11 अगस्त तक सागर पहुंच रहीं हैं। सागर में 12 अगस्त को सभी यात्राओं का एकत्रीकरण होगा। इस एकत्रीकरण के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रहेंगे वे इस अवसर पर संत रविदास के भव्य विशाल मंदिर का शिलान्यास करेंगे।

भारत की सांस्कृतिक पुर्नस्थापना के संकल्प के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगातार सक्रिय हैं। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की संकल्पना से समय ने करवट बदली और जनआकांक्षाओं के अनुरूप अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का काम अंतिम चरण में है। वहीं काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का र्णोद्वार हुआ। वहीं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के प्रयासों से महाकाल लोक बना।

अब इसी कड़ी में सभी वर्ग, वर्ण जाति और समूह के बंधुओं को को एक सूत्र में पिरोकर सशक्त समरस समाज और सशक्त राष्ट्र निर्माण की दिशा में संत रविदास महाराज का 100 करोड की लागत से विश्व का सबसे बडा मंदिर की आधारशिला रखी जा रही है। जो समृद्ध भारत निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण आयाम है ।

(लेखक वरिष्ठ भाजपा नेता है)